29-08-75   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन 

अब विधि की स्टेज पार कर सिद्धि-स्वरूप बनना है

सर्व रिद्धि-सिद्धियों के दाता, सर्व मनोकामनाओं को परिपूर्ण करने वाले, महादानी-मूर्त, वरदानी मूर्त और अव्यक्त-मूर्त बापदादा बोले -

आज कौन-सी सभा लगी हुई है? स्वयं को किस स्वरूप में वर्तमान समय देख रहे हो? यूँ तो जैसे बापदादा बहुरूपी है वैसे ही आप सब भी बहुरूपी हो। लेकिन इस समय किस स्वरूप को धारण कर इस सभा में बैठी हो? यह जानते हो कि आज की सभा किन्हों की है? बताओ तो वर्तमान समय दुनिया के लोग आप श्रेष्ठ आत्माओं के कौनसे स्वरूप का आह्वान कर रहे हैं? आप सब श्रेष्ठ आत्माओं का आह्वान करते हैं व एक आत्मा का। किसका आह्वान करते हैं? आपका किस स्वरूप में वर्तमान समय आह्वान करते हैं? अभी दुनिया में कौन-सा समय चल रहा है? आह्वान किसका चल रहा है? वर्तमान समय दो रूपों से आह्वान कर रहे हैं। देखो तो वे आप लोगों का ही आह्वान कर रहे हैं और आप लोगों को मालूम ही नहीं पड़ता। 

इस समय सबसे ज्यादा वरदानी व विश्व-कल्याणकारी दाता के रूप में आप सब श्रेष्ठ आत्माओं का चारों ओर आह्वान हो रहा है, क्योंकि भक्ति मार्ग द्वारा व भक्ति के आधार से, यथाशक्ति, श्रेष्ठ कर्मो के द्वारा जो भी अल्पकाल के साधन व सामग्री अर्थात् वैभव आज की दुनिया में प्राप्त हैं - उन सब का अल्पकाल की प्राप्ति का सिंहासन डगमगाना शुरू हो गया है। जब कोई का आधार रूप सिंहासन हिलना शुरू होता है, तो उस समय क्या याद आता है? ऐसे समय सदा काल की प्राप्ति कराने वाले व सुख चैन देने वाले बाप और साथ-साथ शिव शक्तियाँ व महादानी वरदानी देवियाँ ही याद आती हैं, क्योंकि देवियों अथवा माताओं का ह्दय स्नेही और रहमदिल होने के कारण वर्तमान समय माता के रूप का पूजन या आह्वान ज्यादा करते हैं। सिद्धि-स्वरूप अर्थात् सर्व कार्य सिद्ध करने वाली आत्माओं का आह्वान वर्तमान समय ज्यादा है। 

आजकल सर्व परेशानियों से परेशान निर्बल आत्मायें, मंज़िल को ढूँढ़ने वाली आत्मायें और सुख-शान्ति की प्राप्ति के लिये तड़फती हुई आत्मायें पुरूषार्थ की विधि नहीं चाहतीं, बल्कि विधि के बजाय सहज सिद्धि चाहती हैं। सिद्धि के बाद विधि के महत्व को जान सकेंगी। ऐसी आत्माओं को आप विश्वकल् याणकारी आत्मा का कौन-सा  स्वरूप चाहिए? वर्तमान समय चाहिए प्रेम स्वरूप। लॉफुल नहीं, लेकिन लवफुल पहले लव दो फिर लॉ दो। वे लव के बाद लॉ को भी स्नेह का साधन अनुभव करेंगे क्योंकि बाहर के रूप की चमक वाली दुनिया में व विज्ञान के युग में विज्ञान के साधन बहुत ही हैं, लेकिन जितना भिन्न-भिन्न प्रकार के अल्पकाल की प्राप्ति के साधन निकलते जाते हैं उतना ही सच्चा स्नेह व रूहानी प्यार, स्वार्थ-रहित प्यार समाप्त होता जा रहा है। आत्माओं से स्नेह समाप्त हो, साधनों से प्यार बढ़ता जा रहा है। इसलिए कई प्रकार की प्राप्ति के होते हुए भी स्नेह की अप्राप्ति के कारण सन्तुष्ट नहीं। और भी दिन-प्रतिदिन यह असन्तुष्टता बढ़ेगी। महसूस करेंगे कि यह साधन मंज़िल से दूर करने वाले, भटकाने वाले हैं! ये आत्मा को तड़फाने वाले हैं। अर्थात् जैसे कल्प पहले का गायन है कि अन्धे की औलाद अन्धे, मृग तृष्णा के समान सर्व प्राप्ति से वंचित ही रहे। ऐसा अनुभव समय-अनुसार चारों ओर करेंगे। 

ऐसे समय पर ऐसी आत्माओं की सर्व मनोकामनायें पूर्ण करने वाली व मन- इच्छित प्रत्यक्ष फल देने वाली कौनसी आत्मायें निमित्त बनेंगी? जो स्वयं सिद्धि स्वरूप हों, दिन-रात विघ्नों के मिटाने की विधि में न हों। स्वयं बापदादा द्वारा मिले हुए प्रत्यक्ष फल (भविष्य फल नहीं) - अतीन्द्रिय सुख व सर्व-शक्तियों के वरदान प्राप्त हुई वरदानी-मूर्त आत्मायें होंगी। स्वयं पुकारने वाले नहीं होंगे कि बाबा यह कर दो, यह दे दो! रॉयल रूप से मांगने का अंश भी नहीं होगा। बाबा यह काम आपका है-आप तो करेंगे ही! ऐसे स्वयं करने वाले को स्मृति दिलाकर अपने समान मानव नहीं बनायेंगे क्योंकि कहने से करने वाला मनुष्य गिना जाता है। बिना कहे, करने वाला देवता गिना जाता है। देवताओं के भी रचयिता को क्या बना देते हो? ऐसे मास्टर सर्वशक्तिवान् सर्व-अधिकारी आत्माएँ औरों को भी सहज सिद्धि प्राप्त करा सकती हैं। 

अपने को चेक करो, साधारण चेकिंग नहीं। चेकिंग भी समय प्रमाण सूक्ष्म रूप से होनी चाहिए। वर्तमान समय के प्रमाण यह चेक करो कि हर सब्जेक्ट में विधिस्वरूप कितने हैं और सिद्धि-स्वरूप कितने हैं? अर्थात् हर सब्जेक्ट में विधि में कितना समय जाता और सिद्धि का कितना समय अनुभव होता है? चारों ही सब्जेक्ट्स में मन्सा, वाचा, कर्मणा तीनों रूप में किस स्टेज तक पहुँचे हैं? यह चेकिंग करनी है। 

अभी महारथियों के लिये विधि का समय नहीं है बल्कि सिद्धि-स्वरूप के अनुभव करने का समय है। नहीं तो वर्तमान समय की अनेक परेशानियाँ, अब तक विधि में लगे रहने वाली आत्मा को अपनी शान से परे परेशान के प्रभाव में सहज लायेंगी। इसलिये जैसे गायन है कि पाण्डव अन्त समय में ऊंची पहाड़ी पर गल गए अर्थात् स्वयं देह-अभिमान व दु:ख की दुनिया के प्रभाव से परे ऊंची स्थिति में स्थित हो गये। ऊंची स्थिति में स्थित हो नीचे रहने वालों का साक्षी हो खेल देखो। ऐसी स्थिति में रहने वाला ही समस्या-स्वरूप नहीं लेकिन समाधानस्व रूप हो जायेगा, तो वर्तमान समय ऐसी स्थिति चाहिए। ऐसी है? जरा भी हलचल में तो नहीं आ जाते? क्या होगा, कैसे होगा, हमारा क्या होगा? अचल स्वरूप हो ना? अचल में कोई हलचल नहीं। ऐसी स्थिति वाले ही विजयी रत्न बनेंगे। 

बापदादा आज बच्चों की आज्ञा पर आज्ञाकारी का पार्ट बजा रहे हैं। प्रोग्राम प्रमाण नहीं आये हैं - तो फॉलो फादर। कल आत्माओं का आह्वान है, बाप का नहीं! आप लोग भी अपने विश्व-महाराजन् स्वरूप में व विश्व के मालिक पन के बाल स्वरूप में अच्छी तरह स्थित रहना। जिससे आपके अपने-अपने भक्त अल्पकाल के लिए भी दर्शन से प्रसन्न तो हो जायें। और फिर सभी अनुभव सुनाना कि सारे दिन में कितने भक्तों को बाप द्वारा भक्ति का फल दिलाया। अपने भक्तों को राजी तो करेंगे न? एक की यादगार नहीं है, एक के साथ आप सब भी हो। तो कल आप सबकी जन्माष्टमी मनायेंगे। सभी कृष्ण समान देवताई स्वरूप में तो होंगे न? आप सबके देवताई स्वरूप के स्मृति का दिन है। दुनिया वाले मनायेंगे और आप क्या करेंगे? वह मनायेंगे आप मनाने वालों के प्रति महादानी और वरदानी बनेंगे। अच्छा। 

ऐसे सागर को भी स्नेह के गागर में समाने वाले, सदा बाप समान सर्व सिद्धि-स्वरूप, हर सेकेण्ड सर्व प्रति विश्व-कल्याणकारी वरदानी, स्वयं द्वारा बाप का साक्षात्कार कराने वाले, साक्षात् बाप स्वरूप साक्षात्कारी मूर्त, सदा निराकारी और सदा सदाचारी श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते। 

जैसे फौरेन में लौकिक लाइफ फास्ट रहती है वैसे आत्मा के पुरूषार्थ की स्पीड भी फास्ट है? सेवाधारी हो ना? सेवा के सिवाय और कुछ नहीं, उठते भी सेवा, सोते भी सेवा, स्वप्न भी देखेंगे तो सेवाधारी के रूप में - ऐसे सेवाधारी हो? हर सेकेण्ड, हर श्वांस सेवा प्रति, स्वयं प्रति नहीं। स्वयं के आराम प्रति नहीं, स्वयं के पुरूषार्थ तक नहीं, स्वयं के साथ दूसरों का पुरूषार्थ इसको कहा जाता है सेवाधारी। ऐसे सर्विसएबल का लेबल लगाया है मस्तक में? सर्विसएबल के मस्तक पर कौन-सी निशानी होगी? आत्मा रूपी मणि। मस्तक मणि है - वह चमकती हुई नज़र आये यह है सर्विसएबल का लेबल। अच्छा! 

इस मुरली की विशेष बातें

1. इस समय भक्त-गण अधिकतर वरदानी, मनोवांछित फल देने वाली विश्व-कल्याणकारी दाता के रूप में आप सब श्रेष्ठ आत्माओं का आह्वान कर रहे हैं। अतएव अब विधि नहीं सिद्धि-स्वरूप बनो। 

2. विज्ञान के युग में बाहरी चमक-दमक वाले साधन तो बहुत हैं, परन्तु सच्चा रूहानी स्नेह व स्वार्थ-रहित प्यार समाप्त होता जा रहा है। अतएव अब समय लॉफुल का नहीं, बल्कि लवफुल (प्रेम स्वरूप) बनने का है। 

3. स्वयं देह-अभिमान व दु:ख की दुनिया के प्रभाव से परे ऊंची स्थिति में स्थित हो नीचे रहने वालों का साक्षी हो खेल देखो। तब आप समस्या-स्वरूप नहीं बल्कि समाधान-स्वरूप बन जायेंगे।